DLS Method in Cricket:
DLS Method in Cricket: क्रिकेट एक अनिश्चितताओ का खेल कहा है और जब यह खेल खेला जा रहा हो तब बारिश भी अनिश्चित रूप से आ सकती है। तो इस खेल में, खेल की स्थितियों में बदलाव को ध्यान में रखते हुए खेल को तटस्थ रूप से आगे बढ़ाने के लिए कई नियम बनाए गए हैं। उनमें से ही एक महत्वपूर्ण और जरूरी नियम है DLS Method.
यह मेथड विशेष रूप से तभी उपयोग मे ली जाती है जब मैच कुदरती कारण (बारिश) या अन्य कारणों से रुकता है। DLS मेथड का पूर्ण नाम “डकवर्थ-लुईस-स्ट्रैस (Duckworth Lewis Stern)” Method है, जो क्रिकेट मैचों में संशोधित लक्ष्य निर्धारित करने का एक तरीका है। इसे 1996 में इंजीनियर फ्रैंक डकवर्थ और क्रिकेट सांख्यिकीकार टोन लुईस ने विकसित किया था, और इसके बाद 2014 में स्टीफन स्ट्रैस द्वारा इसे अपडेट किया गया था।
DLS Method का इतिहास और विकास
DLS Method का इतिहास सन् 1996 से शुरू होता है, DLS Method को सन् 1996 में डकवर्थ और लुईस द्वारा उस समय प्रस्तुत किया गया था। इस method ने कुदरती (बारिश) या अन्य विघ्नों के कारण खेल की अवधि में बदलाव के समय उचित लक्ष्य निर्धारित करने का एक वैज्ञानिक तरीका प्रदान किया। जब खेल में किसी कारणवश बदलाव होता है, तो पारंपरिक तरीकों से लक्ष्य निर्धारित करना कठिन हो जाता है, इसलिए DLS Method ने एक गणनात्मक और सांख्यिकीय दृष्टिकोण प्रदान किया।
साल 2014 में, इस Method को अपडेट किया गया और इसे DLS Method के नाम से प्रकाशित कर दिया। इसमें स्टीफन स्ट्रैस ने काफी सुधार कर दिए, ताकि यह Method और भी सही, सटीक और प्रभावशाली हो सके।
DLS Method का आधार
DLS Method की मूल बात यह है कि क्रिकेट एक ऐसा खेल है जिसमें बल्लेबाजों और गेंदबाजों की स्थिति का विशेष महत्व होता है। इसके तहत, दोनों टीम के पास एक निर्धारित संख्या में ओवरऔर विकेटे होती हैं, जो खेल की मौजूदा परिस्थिति को प्रभावित करते हैं। जब मैच में किसी कारण से रुकता है, तो DLS Method का उपयोग यह तय करने के लिए किया जाता है कि उस समय के खेल की स्थिति को ध्यान में रखते हुए बल्लेबाजी टीम को कितना स्कोर करना होगा और गेंदबाजी टीम को कितनी ओवर डालनी होगी।
DLS Method एक ऐसे मॉडल पर आधार रखती है, जिसमें विभिन्न मापदंडों का प्रयोग करके एक सुनिश्चित लक्ष्य निर्धारित किया जाता है। इसके तहत, मैच की परिस्थिति को दो महत्वपूर्ण विभागों में बाँट दीया जाता है:
- बचे हुए ओवर: खेल में बचे हुए ओवर की संख्या।
- बचे हुए विकेट: बचे हुए विकेट की संख्या।
इन दोनों तत्वों को मिलाकर एक “संसाधन” प्रतिशत निर्धारित किया जाता है। यह प्रतिशत यह बताता है कि खेल की स्थिति के आधार पर कितने संसाधन अभी भी उपलब्ध हैं।
DLS Method की गणना
DLS Method में गणना की प्रक्रिया कुछ जटिल हो सकती है, लेकिन इसे सरल बनाने के लिए इसे निम्नलिखित चरणों में समझा जा सकता है:
1. संसाधन प्रतिशत निर्धारण: पहले, खेल की स्थिति के आधार पर संसाधन प्रतिशत की गणना की जाती है। यह प्रतिशत उस समय की स्थिति के आधार पर निर्धारित होता है, जैसे कि कितने ओवर बचे हैं और कितने विकेट बचे हैं।
2. मूल्यांकन तालिका का उपयोग: इस संसाधन प्रतिशत का उपयोग एक तालिका में किया जाता है, जो पहले से निर्धारित होती है। इस तालिका में विभिन्न खेल स्थितियों के लिए संसाधन प्रतिशत और लक्ष्य निर्धारण के लिए डेटा होता है।
3. लक्ष्य संशोधन: जब मैच की स्थिति बदलती है, तो संसाधन प्रतिशत के आधार पर लक्ष्य को संशोधित किया जाता है। यह संशोधित लक्ष्य वह होता है जिसे टीम को जीतने के लिए हासिल करना होता है।
उदाहरण के माध्यम से DLD Method की समझ
मान लीजिए कि एक वनडे क्रिकेट मैच चल रहा है। मैच की शुरुआत में, टीम A ने 50 ओवर में 250 रन बनाए। टीम B को 50 ओवर में 251 रन का लक्ष्य मिला है। अब मान लीजिए कि बारिश के कारण 30 ओवर के खेल के बाद मैच रुक जाता है, और टीम B ने 5 विकेट खोकर 150 रन बना लिए हैं।
1. मौजूदा परिस्थिति का विश्लेषण:
टीम B ने अपने 50 मे से 30 ओवर खेले हैं और अपनी 5 विकेटे खो चुके हैं। और जब बारिश के बाद खेल फिर से शुरू होता है, तब केवल 20 ओवर बाकी रहते हैं।
2. उपलब्ध संसाधन प्रतिशत की गणना:
DLS Method का इस्तेमाल करते वख्त, हमें इस चीज पर पहले गौर करना होता है कि टीम B के पास मैच के रुकावट के वख्त कितने संसाधन उपलब्ध हैं। और यह संसाधन प्रतिशत इस चीज पर निर्भर करता है कि बचे हुए ओवर और विकेट की स्थिति क्या है।
- बचे हुए ओवर: 20 ओवर (50 ओवर में से 30 ओवर खेले जा चुके हैं)
- बचे हुए विकेट: 5 विकेट (10 विकेट में से 5 विकेट खो चुके हैं)
इस डेटा को DLS तालिका या सॉफ़्टवेयर का उपयोग करके संसाधन प्रतिशत में बदला जाता है।
3. संसाधन प्रतिशत की तालिका से लक्ष्य निर्धारण:
मान लीजिए कि DLS तालिका के अनुसार, जब टीम B के पास 20 ओवर और 5 विकेट बचे हैं, तो उपलब्ध संसाधन प्रतिशत 60% है।
इसके बाद, हमें यह देखना होगा कि खेल की स्थिति के अनुसार नया लक्ष्य क्या होगा। मूल लक्ष्य 251 रन था।
4. नए लक्ष्य की गणना:
DLS तालिका के अनुसार, यदि 60% संसाधन उपलब्ध हैं और खेल में 20 ओवर बाकी हैं, तो टीम B को नया लक्ष्य प्राप्त करने के लिए संशोधित लक्ष्य निर्धारित किया जाएगा। मान लीजिए कि इस संसाधन प्रतिशत के आधार पर नया लक्ष्य 200 रन होता है।
अंतिम परिणाम
इस उदाहरण के अनुसार, जब टीम B ने 30 ओवर में 150 रन बनाए थे और 20 ओवर बाकी थे, तो DLS Method के तहत टीम B को जीतने के लिए 200 रन का संशोधित लक्ष्य मिलेगा।
यदि बारिश के बाद खेल फिर से शुरू होता है और टीम B 200 रन बनाने में सफल होती है, तो टीम B को विजेता घोषित की जाएगी। अगर वे 200 रन नहीं बना पाते हैं, तो टीम A को विजेता घोषित किया जाएगा।
DLS Method के लाभ और सीमाएं
लाभ
1. विज्ञान आधारित: DLS Method एक गणनात्मक और सांख्यिकीय मॉडल पर आधारित है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि लक्ष्य निर्धारण एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से किया जाता है।
2. फैसला लेने में सहायक: यह विधि निर्णायक और स्पष्ट होती है, जिससे अंपायर और प्रबंधन को मैच की स्थिति के अनुसार उचित निर्णय लेने में सहायता मिलती है। कई बार क्रिकेट के खेल की कुछ प्रतियोगिया 2 या 4 सालों मे एक बार होती है और ऐसे प्रतियोगिया का हर एक मैच का परिणाम महत्वपूर्ण होता है। एक बारिश के चलते अगर यह परिणाम न मिले तो क्रिकेट चाहकों और दर्शकों मे नाराजगी देखने को मिलती है। तो DLS Method कम से कम मैच का परिणाम लाने का काम करता है।
3. प्रत्येक स्थिति के लिए सटीक: DLS Method प्रत्येक मैच की विशिष्ट स्थिति को ध्यान में रखती है और उस आधार पर लक्ष्य निर्धारित करती है, जिससे खेल की निष्पक्षता बनाए रखी जाती है।
सीमाएं
1. जटिलता: इस विधि की गणना में कुछ जटिलता हो सकती है, जिससे कुछ लोगों को इसे समझने में कठिनाई हो सकती है। कई बार पहली नजर मे DLS Method से निर्धारित हुआ लक्ष्य तटस्थ नहीं लगता जिससे टीमों के बीच नाराजगी और मैच के परिणाम पर दर्शकों द्वारा आलोचना भी हो सकती है।
2. अचानक होता लक्ष्य मे परिवर्तन: कभी-कभी कुदरती या अन्य कई कारणों से खेल मे अचानक बाधा आती है और स्थिति में तुरंत ही परिवर्तन होता है, जो कि DLS Method के हिसाब से लक्ष्य में अचानक बदलाव होता है। जिससे अगर कोई पक्ष के पास लय हो यानि ली बल्लेबाजी टीम के पास बल्लेबाजी का अच्छा लय और गेंदबाजी टीम के पास गेंदबाजी का अच्छा लय हो और बारिश आ जाए तो खेल का परिणाम पूरा बदल सकता है और टीमों के लय बिगड़ सकता है।
3. प्रभावित खेल की स्थिति: DLS Method उस समय चल रहे खेल की स्थिति पर निर्भर करती है, और कभी-कभी यह बदलाव उस समय की वास्तविक खेल स्थिति को पूरी तरह से नहीं दर्शा सकती।
निष्कर्ष
डीएलएस विधि क्रिकेट के खेल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, खासकर तब जब खेल में किसी कारणवश रुकावट आ जाती है। यह विधि एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के माध्यम से खेल की स्थिति के अनुसार उचित लक्ष्य निर्धारित करने में मदद करती है। इसके लाभ और सीमाएं दोनों होती हैं, लेकिन इसका उपयोग खेल की निष्पक्षता और न्याय सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है। इस विधि के माध्यम से, क्रिकेट मैचों को खेल की स्थिति के अनुसार संतुलित और निष्पक्ष तरीके से संचालित किया जा सकता है।
उम्मीद है हमारे द्वारा प्रकाशित की गई DLS Method की इस विस्तृत जानकारी से आपके क्रिकेट के ज्ञान मे बढ़ोतरी होगी। ऐसी ही दिलचस्प और बुनियादी जानकारी के लिए जुड़े रहिए Cricstay के साथ। धन्यवाद।